बिलासपुर : एक कहावत है, इंसान उतना ही पैर फैलाता है, जितनी बड़ी चादर हो। शायद शहर सरकार यानी नगर निगम के ओहदेदारों को इस कहावत से कोई सरोकार नहीं शायद तभी तो 15 गांव और 3 निकायों को नगर निगम का हिस्सा बना लिया गया यह बहुप्रतीक्षित मांग थी, लेकिन फैसला लेने तक काफी देर हो चुकी थी देर क्यों, यह जानना है तो इन 18 गांवों के रहवासियों से पूछ लीजिए वर्ष 1867 में बिलासपुर को नगर पालिका का दर्जा मिला था समय के साथ-साथ शहर की सरहदें बदलती-बढ़ती रहीं रायपुर, दुर्ग-भिलाई, कोरबा या अन्य शहरों की सीमाएं तेजी से बढ़ीं, लेकिन न्यायधानी बिलासपुर की सीमाएं सिमटी रहीं.. बड़ी देर से यानी अगस्त 2019 में एक अधिसूचना जारी कर इन गांवों व निकायों को एकाएक नगर निगम का वार्ड बना दिया गया....
सीमावृद्धि की सुगबुगाहट पर विरोध के स्वर मुखर हुए थे। तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने तो रैली-मोर्चा तक खोल दिया था यही नहीं, सत्ता पक्ष के नेता भी अंदरूनी तौर पर विरोध करते रहे। सीमाएं बढ़ गईं। अब यह निगम की स्वाभाविक जिम्मेदारी बनती है कि वह वार्ड बन चुके इन गांवों को संभाले, उनकी देखरेख करे, सुविधाएं दे और उनकी समस्याएं दूर करे। लेकिन हो रहा है इसके ठीक विपरीत। वजह- निगम के पास पुराने शहर को संभालने के लायक ही फंड नहीं है तो वह नए वार्डों को कैसे संभाले। सीमावृद्धि को तकरीबन चार बरस गुजरने को हैं, निगम इन गांवों में बुनियादी सुविधाएं दिला पाने में नाकाम रहा है....
हमेशा एक ही रोना, फंड की कमी हां, इन वार्डों से टैक्स की वसूली में कोई रियायत नहीं है यहां के ‘ग्रामीणों’ को ‘नागरिक’ बनने का खामियाजा दर्जनभर करों के बोझ तले दबकर भुगतना पड़ रहा है... संपत्तिकर, जलकर, समेकित कर, प्रकाश कर, अग्नि कर, शिक्षा उपकर और न जाने कितनी तरह के कर इनसे वसूले जा रहे हैं पिछले वित्तीय वर्ष में आउटर में 20 करोड़ 51 लाख 52 हजार टैक्स वसूली का लक्ष्य रखा गया था जिसमें 81.54 परसेंट की वसूली हुई, जो शहर के वार्डों की तुलना में काफी बेहतर है इस वित्तीय वर्ष 45 करोड़ का का लक्ष्य है जिसमें तिफरा औद्योगिक क्षेत्र भी शामिल है, आज की स्थिति में वसूली 19% हुई है इन करों के एवज में निगम में जुड़े ग्रामीण वार्डों को क्या मिल रहा है? इस सवाल का नगर निगम के किसी भी ओहदेदार के पास कोई जवाब नहीं है....