उरला थाना प्रभारी बृजेश कुशवाहा का मानना है की हाईकोर्ट का आदेश थाना प्रभारी के लिये महत्वपूर्ण नही होता है.... थाना अपने विवेक से निर्णय कर सकती है की कोर्ट का आदेश मानना जरूरी है या नही.....
हाल ही मे एक मामला हुआ जिसमे दो पक्षों के बीच जमीन विवाद विगत कुछ वर्षो से चल रही है जिसका प्रकरण न्यायालय मे लंबित है.... उसी प्रकरण मे हाईकोर्ट छत्तीशगढ़ द्वारा पहले एक पक्षकार को स्थागन आदेश मिला था एवं बाद मे हाई कोर्ट ने पुनः सुनवाई करते हुये आदेश दिया की जब तक कानून के सभी नियमो एवं कोर्ट मे पेंडिंग प्रकरण की सुनवाई पूर्ण नही हो जाती तब तक उक्त विवादित जमीन पर किसी तरह का निर्माण या तोड़ फोड़ नही किया जा सकता.....
दिनांक 17 अक्टुबर 2023 को उक्त विवादित जमीन पर दूसरे पक्षकार द्वारा तोड़ फोड़ एवं अन्य कार्य किया जाने लगा... जब उसकी लिखित शिकायत थाने मे दी गयी तो थाना प्रभारी द्वारा शिकायत लेने से मना कर दिया गया जिसके बाद प्राथी द्वारा डाक के माध्यम से शिकायत भेजी गयी जो अगले दिन थाने को प्राप्त हुआ... प्राथी द्वारा उरला सीएसपी सहित रायपुर एसपी को भी लिखित शिकायत दी गयी परंतु 10 दिन मे भी हाईकोर्ट के आदेश का पालन नही कराया गया एवं विवादित जमीन पर तोड़ फोड़ एवं निर्माण कार्य किया जाता रहा....
जब इस विषय मे थाना प्रभारी से मीडिया के रिपोर्टर ने थाना प्रभारी से जानकारी मांगी गयी तो पहले तो ये कहा गया की हाईकोर्ट के आदेश मे कुछ नही लिखा है... फिर जब हाईकोर्ट एवं तहसीलदार का स्थगंण आदेश को व्हाट्स एप के माध्यम से भेजा गया तो थाना प्रभारी द्वारा फोन नंबर को ब्लॉक कर दिया गया....
जब पुनः अन्य नंबर से थाना प्रभारी से संपर्क किया गया तब थाना प्रभारी द्वारा यह कहा गया की मेरे पास समय नही है....
अब तक आम जनता मे यह विश्वास था की कम से कम कोर्ट के आदेश का पालन पुलिस एवं प्रशासन द्वारा किया जाता है जिससे लोगों मे न्याय एवं सुरक्षा की उम्मीद बनी होती है
लेकिन अब तो हाईकोर्ट के आदेश का भी अवमानना करना पुलिस अधिकारियों के लिये सामान्य बात है....