रायपुर : महापौर मीनल चौबे ने कहा कि एक राष्ट्र, एक चुनाव' केवल एक नारा नहीं है, बल्कि यह हमारे महान राष्ट्र भारत के लिए एक दूरदर्शी सोच है। यह विचार 140 करोड़ भारतवासियों के सेवक, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदृष्टि का परिणाम है, जो लोकतंत्र की जड़ों को और अधिक मजबूत करने और राष्ट्र के संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग सुनिश्चित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है..
पार्षद रेणु जयंत साहू ने कहा कि सिर्फ और सिर्फ जुमला हैं
लाल बहादुर शास्त्री वार्ड 51 की पार्षद रेणु जयंत साहू ने नगर पालिक निगम, रायपुर द्वारा आयोजित विशेष सामान्य सभा की बैठक के उद्देश्य ‘‘ एक राष्ट्र, एक चुनाव’’ के संबंध में आयोजित बैठक में ‘‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’’ से आने वाली चुनौतियों के संबंध में कहा कि यह योजना केवल कागजों पर ही अच्छी लगती है लेकिन यह अत्यंत विवादास्पद है. इससे हमारे संघीय ढांचे पर भी प्रभाव पडेगा। बैठक में इसकी खामियां गिनाते हुये कहा कि एक राष्ट्र एक चुनाव की योजना नीतिगत नहीं लगती राज्य सरकार प्रदेश में एक साथ पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनाव नहीं करवा पाई तो पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की बात हास्यपद लगती है। जुमलो के बल पर चलने वाली सरकार सिर्फ जुमलेबाजी कर लोगो का ध्यान महंगाई एवं अन्य समस्याओं से हटाने के लिये कर रही है।
सदन के पटल पर क्रमवार खामियां बताई
1. मध्यावधि चुनाव या राष्ट्रपति शासन जैसी स्थितियों में यदि कोई पार्टी बहुमत प्राप्त करने में विफल रहती है तो इस चुनौती से कैसे निपटा जायेगा इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता।
2. एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय राजनैतिक दल स्थानीय मुद्दो को प्रमुखता से नहीं उठा पायेंगे। वे पैसो एवं चुनावी रणनीतियों के मसले पर राष्ट्रीय दल से पिछड जायेंगे तथा उनके अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह खडा हो जायेगा।
3. एक राष्ट्र एक चुनाव लागू करने के लिये संविधान में बदलाव करने पर ही लागू किया जा सकता है इसके लिये संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है एवं इसे राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए तभी ये योजना अपना आकार ले सकेगी। सभी प्रदेशों की सरकारों का काल, परिस्थितियां अलग-अलग है। इसमें कैसे समन्वय स्थापित किया जायेगा, इसका भी कोई उल्लेख नहीं मिलता है। इससे भारतीय संविधान के मूल संघीय ढांचे का उल्लंघन हो सकता है क्योंकि हमारा संविधान संघ और राज्यों के लिये अलग-अलग और स्वतंत्र चुनावी चक्रो की परिकल्पना की गई है जिसमें संघीय ढांचे के भीतर उनकी स्वायत्ता का सम्मान किया गया है।
4. क्षेत्रीय मुद्दे, राष्ट्रीय मुद्दों पर भारी पड सकते है जिससे राज्य स्तर पर चुनावी नतीजे प्रभावित हो सकते है।
5. दलबदल विरोधी विधान में टकराव होगा जिससे राजनैतिक अस्थिरिता तथा जनप्रतिनिधियों के मतों का क्रय-विक्रय बढ सकता है।
6. इससे राष्ट्रपति की शक्तियों में कटौती हो सकती है क्यों कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर ही लोकसभा को भंग करता है।
7. सरकार को शुरूआती दौर में मैनेजमेंट से लेकर मैनपावर की कमी से जूझना पड सकता है तथा बजट का एक बडा हिस्सा भी एक साथ खर्च करना पडेगा। लाखों की संख्या में ई.व्ही.एम मशीने, पेपर्स खरीदने होंगे तथा स्टोरेज के लिये जगह बनानी पडेगी। इससे हजारों करोड़ो का अतिरिक्त खर्च आयेगा।
8. दावा यह किया जाता है कि एक साथ चुनाव कराने से कम खर्च होगा लेकिन प्रारंभिक बुनियादी ढांचे और लाॅजिस्टीक की लागत बहुत अधिक हो सकती है।
9. कम पढे लिखे मतदाता में भ्रम की स्थिति पैदा होगी। इससे मतदान प्रतिशत में कमी आ सकती है।
10. इससे केन्द्र और राज्य सरकार के संबंधों पर भी असर पडने की संभावना है।
11. प्राकृतिक आपदाए, महामारी या अन्य आपातकालीन परिस्थिति में पूरे देश में एक साथ चुनाव को बाधित कर सकती है। अलग-अलग समय में चुनाव होने पर लचीलापन रहता है।
12. लंबे समय तक आदर्श आचार संहिता के लागू होने से सरकार के नीतिगत निर्णय और विकास कार्य बाधित होगा..।
